लिट्टी चोखा का इतिहास क्या है जानें

       लिट्टी चोखा अब किसी पहचान का मोहताज नहीं है, यह बिहार से शुरू हो आज देश के टाॅप खाने की लिस्ट में आ गया है। पीएम मोदी जी हो या टाॅप स्टार सब इसका स्वाद चख चुके हैं। लिट्टी चोखा पुरे विश्व में आज अपनी एक पहचान रखता है। आटा, सत्तु, आलू, बैगन, टमाटर से बना कंप्लीट खाना है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में तो ठंड में लगभग हर 2-4 दिन में हम लोग पार्टी करते हैं लिट्टी चोखा गोयठा(उपले) की आग में बना हो या गैस पर पका हो‌। पटना स्टेशन पर बहुत सारे दुकान ऐसे मिलेंगे जो बस लिट्टी चोखा बना‌ फेमस है। आइए आज हम इसका इतिहास जानते हैं ये शुरू कहां से हुआ इसकी कहानी क्या है.......


      लिट्टी चोखा का इतिहास क्या है जानें...


    लिट्टी चोखा मगध काल से ही शुरू माना जाता है मगध साम्राज्य जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान तक फैला था चंद्रगुप्त मौर्य राजा था उनके समय में ही पुरी देश के अलग अलग हिस्सों में ये फैला, सिपाही जब युद्ध के लिए जाते थे तो उनके लिए यह सबसे अच्छा भोजन हुआ करता था। इसमें ज्यादा पानी का भी जरुरत नहीं, शरीर को कमजोर भी होने नहीं देता था एक दिन बना लिये तो 3-4 दिन आसानी से चलता था।


     बस आटा को कम पानी में खुब कड़ा सान कर, सत्तु ‌‌‌‌‌में नींबू, मिर्च, नमक, अजवाइन, सरसों तेल, प्याज, लहसुन मिला दिए आटा में भर दिए फिर गोयठा या लकड़ी का आग जला या तेल में छाना भी जाता है। उसमें टमाटर, बैंगन, आलू भी पका लिए। आलू, बैंगन, टमाटर को छील सबको मिक्स कर प्याज, मिर्च और तेल डाल चोखा बना लें। तब तक लिट्टी तैयार उसको मन है घी में डुबो दीजिए ना तब खा लिजिए। ये रानी लक्ष्मीबाई की सेना से लेकर महाराणा प्रताप तक की सेना के खाने का जिक्र है।

     मुगल के आने के बाद ये थोड़ा बदल गया वो लोग इसे मटन करी, शोरबा आदि के साथ खाने लगे। वैसे पक्के तौर पर कुछ प्रमाण नहीं कहे जा सकते हैं राजस्थान मेवाड़ में भी ऐसे ही डिश बाटी खाने का जिक्र है। बस उसमें सत्तु नहीं भराता है, वो लोग उसको दाल और चुरमा के साथ खाते हैं


   मेरा मानना है कि बिहार में शायद पहले भी गरीबी ही था‌ मेरे पुर्वज कहते थे कि जब वो खेती करने दूर जाते थे तो खाना पीना कहा मिलता बनता तो वो लोग वहां यही खाना सबसे अच्छा मानते थे। कुछ तो आटा का लोई बना आग में पका बिना सत्तू के बस ऐसे ही लिट्टी जिसे राजस्थानी बाटी कहते हैं उसको भैंस के दूध के साथ खूब चाव से खाते थे। और कभी कभी उसी आटा में सत्तू मसाला मिला, सब्जी सब को आग पर पका फिर लिट्टी चोखा आराम से खाते थे। इसमें मिलाने वाला मसाला भी आप आराम से 10-15 दिन रख सकते हैं।

     लिट्टी चोखा और भी तरीके से बनाते हैं जैसे सत्तू में सब कुछ मिला के फिर पराठे जैसे बेल देते वो भी बहुत टेस्टी लगता है। सत्तू परांठे को चोखा, धनिया टमाटर चटनी, साॅस, राई चटनी, मिर्च चटनी और आचार के साथ खाइए ओह हो‌ मजा आ जाएगा। इस ठंड जरूर खाएं और बताएं कैसा लगा।


     अभी जहां घूमने चले जाइए एक लिट्टी चोखे की दुकान आपको जरूर मिलेगी, हर राज्य, हर जिले में..इसका स्वाद आपको आसानी से मिल जाएगा। बिहार में लिट्टी चोखा के अलावा घुघनी(चना का मसालेदार रस वाली सब्जी) और इमली चटनी के साथ भी खाया जाता है। अगर आप कभी‌ ट्राई ना किए हैं तो एक बार जरूर चखिए...


     बाटी लिट्टी का इतिहास जो हो लेकिन लिट्टी चोखा तो बिहार से ही शुरू हुआ। बिहार में शादी हो, बर्थडे हो, कोई छोटा मोटा फंक्शन हो, बारिश हो और ठंड हो‌ हमारे यहां तो साल के पहले दिन लिट्टी चोखा का पुरा पार्टी होता है। आपने लिट्टी चोखा खाया है तो बताएं कैसा लगा, कमेंट अवश्य करें।


     


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