नवरात्र चल रही है अभी हर शक्तिपीठ और माता मंदिर में बहुत भीड़ चल रही है, मुख्य रूप से 52 शक्तिपीठ हैं जो देश के अलग अलग हिस्सों में और कुछ देश के बाहर भी स्थित है कुछ शक्तिपीठ जो ऐसे हैं जिनको लेकर लोगों के मत अलग अलग है।पिछले पोस्ट में हमने शक्तिपीठ किसे कहते हैं और कैसे बनें शक्तिपीठ के बारे में और बिहार झारखंड स्थित शक्तिपीठ के बारे में जानें थे आज पूर्वोत्तर राज्यों में स्थित शक्तिपीठ के बारे में जानेंगे।
पूर्वोत्तर राज्यों के शक्तिपीठ के बारे में....
पूर्वोत्तर राज्यों में प्रमुख रूप से असम की कामख्या धाम, मेघालय में मां जयंतेश्वरी और त्रिपुरा में मां त्रिपुर सुन्दरी स्थित है। मणिपुर में लाइरेम्बी देवी के नाम से और अरुणाचल प्रदेश में भी एक शक्तिपीठ बताया गया है।
उमानंद मंदिर जाने के लिए स्टीमर
कामख्या स्टेशन |
उमानंद मंदिर |
कामख्या देवी असम - यह असम की राजधानी दिसपुर से थोड़ी दूर पर स्थित है। गुवाहाटी दिसपुर से 8 किलोमीटर दूर स्थित है जहां नीलांचल पर्वत पर मां कामख्या का मंदिर है। इस मंदिर में माता का योनि गिरा था, यहां कोई मुर्ति नहीं है योनि की पूजा की जाती है। यह प्राचीन मंदिरों में से एक है, 8वीं शताब्दी में यह मंदिर बनाया गया था।
यहां आषाढ़ महीने में माता का मासिक धर्म शुरू होता है जिस कारण तीन दिन मंदिर बंद भी रहता है। उस समय ब्रह्मपुत्र नदी पुरा लाल हो जाता है उस समय वहां बहुत बड़ा मेला लगता है जिसे अंबुबाची मेला कहते हैं। इस समय माता के मंदिर में सफेद कपड़ा पुरा रखा जाता है और जब तीन दिन बाद वो मंदिर खुलता है तो खुन से लिपटे कपड़ को लेने के लिए घंटों लोग लाइन में खड़े रहते हैं।
मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या भोजन, बलि, भंडारा आदि कराया जाता है। यहां तांत्रिक शक्तियों की पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि के समय या नवरात्र में तांत्रिक शक्तियों को पाने के लिए विशेष पूजा की जाती है। अघोड़ी यहां काला जादू सीखने आते हैं, यहां सिद्धि प्राप्त होती है। फूल प्रसाद सब वही मंदिर के आसपास आसानी से मिल जाते हैं।
यहां ब्रह्मपुत्र नदी के बीचोंबीच एक उमानंद मंदिर है जो भगवान शिव का मंदिर है। कामख्या के बाद यहां भी दर्शन करने लोग आते हैं। यहां रोप वे और स्टीमर से जा सकते हैं। मैं अभी दिसंबर में गई थी तो पलटन बाजार, असम राज्य चिड़ियाघर, गुवाहाटी चिड़ियाघर, म्युजिअम, माॅल और प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं।
कामख्या धाम कैसे पहुंचे - हवाई अड्डा गुवाहाटी में है जो मंदिर से 20 किलोमीटर दूर है आप वहां से आ सकते। कामख्या और गुवाहाटी दोनों जगह ट्रेन से आप आ सकते हैं। सड़क से G.T रोड हर जगह से जुड़ी है आसानी से आ सकते हैं।
किस समय जाएं - कामख्या धाम कभी भी पिक सीजन में नहीं जाना चाहिए, अभी जब मैं दिसंबर में गई तो सुबह 8 बजे लाइन लगे लगे शाम 5 बजे दर्शन हुए। ओनलाइन बुक होता है लेकिन पिक सीजन में नहीं। दुर्गा पूजा, अंबुबाची मेला, लास्ट दिसंबर आदि में भीड़ सोच कर जाएं। बाकी दिनों में शायद भीड़ कम रहती। रहने खाने का व्यवस्था बहुत अच्छा है आप कामख्या या गुवाहाटी कहीं भी चले गए तो होटल आसानी से मिल जाता है टैक्सी आपको मंदिर के नीचे तक छोड़ देता है।
त्रिपुर सुंदरी त्रिपुरा - यह मंदिर कामख्या धाम के जैसे ही तांत्रिक शक्तियों के लिए भी प्रसिद्ध है, यहां तंत्र साधना, । त्रिपुर सुंदरी जो तीनों लोकों में सबसे सुंदर है, यह त्रिपुरा में स्थित होने के कारण भी त्रिपुर सुंदरी के नाम से जाना जाता है। त्रिपुर सुंदरी माता को दस महाविद्या में एक सौम्य कोटि का माता माना जाता है। यह त्रिपुरा के उदयपुर पहाड़ी पर स्थित है। यहां माता का दायां पैर गिरा था, यहां माता 16 कलाओं से पूर्ण हैं इसलिए षोडषी भी कहा जाता है।
यह त्रिपुरा से 3 किलोमीटर दूर राधा किशोर गांव में माता का मंदिर है। यह मंदिर जिस पहाड़ पर स्थित है वो कछुआ आकार का है इसलिए इसे कुर्म पीठ भी कहते हैं। मंदिर के बगल में एक नदी भी है जिसमें कछुआ बहुत पाया जाता है इसलिए यहां कछुआ को खाना खिलाना शुभ माना गया है। मंदिर के गर्भगृह में दो मुर्ति है जो काले रंग के ग्रेफाइट से बना है, एक मुर्ति 5 फूट और दुसरी 3 फूट जिसे "छोटो मा" कहते हैं जो माता चंडी हैं।
दर्शन करने कब जाएं - यहां दोनों नवरात्र में, दिवाली में बहुत भीड़ लगती है। महाशिवरात्रि और सावन में भी मेला लगता है, यहां मुख्य रूप से पेरा चढ़ाते हैं।
त्रिपुरा कैसे पहुंचे - अगरतला में एयरपोर्ट सुविधा है, रेल स्टेशन भी है, उदयपुर में भी रेलवे सेवा है, अगरतला स्टेशन से 59 किलोमीटर दूर उदयपुर पड़ता है आप बस या टैक्सी से जा सकते हैं। सड़क मार्ग भी नेशनल हाईवे 8 जुड़ा है।
मेघालय में मां जयंतेश्वरी - यह मंदिर नर्तियांग मंदिर के नाम से जाना जाता है, यह जयंतियां पहाड़ी पर स्थित है, इस मंदिर की बनावट बहुत ही उम्दा है। यहां माता का बायां जंघा गिरा था। यहां माता का पुजा भारत के और हिस्से से अलग किया जाता है यहां दुर्गा पूजा के समय 4 दिन केला के पौधे को सजा कर उसकी पूजा करते हैं फिर उसको मिटडू नदी में प्रवाहित कर देते हैं।
कैसे पहुंचे मेघालय - यहां डायरेक्ट कोई रेल, हवाई यातायात तो नहीं है। यहां आने के लिए शिलांग आना होगा फिर वहां से 100 किलोमीटर दूर है। एक उमरोई हवाई अड्डे है जो शिलांग से 30 किलोमीटर दूर है उसका जो हर जगह से जुड़ी हुई नहीं है। कोलकाता के एक दो फ्लाइट मिल जाती है।सड़क मार्ग सही है।