1 मार्च को महाशिवरात्रि पर्व होने जा रहा है, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि पर हर शिव मंदिर और ज्योतिर्लिंग में अपार भीड़ रहता है। मैं 7 ज्योतिर्लिंग दर्शन की हुई हुं, मेरे माता पिता बारहों ज्योतिर्लिंग दर्शन कर चुके हैं इसलिए उन सब के जानकारी अनुसार उन सब ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से जानकारी दे रही। अगर आप भी महाशिवरात्रि पर कहीं जानें का प्रोग्राम बना रहे तो अवश्य जाएं। सबसे पहले मैं जहां रहती हुं द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम के बारे में आपने विस्तार से बता रही हुं। अगर आपको पसंद आए तो लाइक कमेंट अवश्य करें।
बाबा बैद्यनाथ धाम देवघर झारखंड में स्थित है। महाराष्ट्र के लोगों का मानना है कि वहां परली स्थित बैद्यनाथ मंदिर असली द्वादश ज्योतिर्लिंग है। लेकिन शंकराचार्य ने देवघर झारखंड स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर को असली कहा है। शिवपुराण के एक श्लोक में कहा गया है " बाबा बैद्यनाथ धाम पुर्वोत्तर में, चिताभूमि के पास, परली ग्राम में गिरिजा के साथ वास करते हैं देवता और असुर जिनकी बंदना करते हैं उन श्री बैद्यनाथ को प्रणाम करता हूं।
कांवर यात्रा यहां एशिया का सबसे बड़ा मेला लगता है, जिसे स्वयं भगवान राम ने भी किया था। सावन में यहां हर साल लाखों लोग 105 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज से गंगा जल भर कांवर से यात्रा करते हैं।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास
बाबा बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंग के साथ माता का शक्तिपीठ भी है इसलिए इसे हृदयापीठ भी कहा जाता है। यहां माता सती का हृदय गिरा था। 12 ज्योतिर्लिंग में कुछ ही ऐसे जगह है जहां माता सती स्वयं भी मौजूद हैं। देवघर मंदिर के ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है क्योंकि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास पौराणिक कथा के अनुसार- रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जब बहुत यज्ञ, तपस्या हवन कर अपना नौ सिर हवन में आहुति दे दिया। जब दशवां सिर देने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। रावण भगवान को अपने साथ लंका ले चलने को कहा। रावण सोने की लंका में पहले से यक्ष, गंधर्व को बांध कर रखे हुए था और स्वयं भगवान शिव को ले जा और शक्तिशाली बनना चाहता था।
भगवान भोले अपने कामना लिंग को रावण के साथ चलने को राजी हो गए लेकिन एक शर्त रखा कि अगर रास्ते में कहीं वो रखा तो फिर वो वहीं स्थापित हो जाएंगे लौट कर नहीं आएंगे। रावण तैयार हो गया सोचा पुष्पक विमान है ही इससे लें जाना क्यों कहीं रूकना होगा। बस कामना लिंग को हाथ में लिए चल पड़ा। पुरे आकाश पाताल देवता आदि में त्राहि त्राहि मच गई अगर भगवान शिव स्वयं कैलाश छोड़ लंका चले जाएंग तो क्या होगा।
द्वादश ज्योतिर्लिंग देवघर झारखंड
तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु को पुकारा, उनके पास गए और कोई उपाय पुछा, भगवान विष्णु ने वरुण देव को कहा रावण के पेट में घुस जाए और लघूशंका जोड़ से लग जाए। वरुण देव ने वैसा ही किया रावण जब कैलाश ने निकला तो लघुशंका का एहसास हुआ, देवघर आते आते उसे कोई उपाय नहीं सुझा। यहां अपना विमान उतारा और एक चरवाहे को बुलाया।
कहा जाता है वो चरवाहा कोई और नहीं स्वयं गणेश जी थे जो बैजू चरवाहा का वेश बना यहां गाय चरा रहे थे। रावण ने उन्हें पुकारा और कहा जरा उनका ये सामान पकड़े वो लघुशंका से निवृत्त हो आता है। रावण बोला वो उसे किसी हालत में धरती पर नहीं रखें, रावण लघुशंका करने गया जहां घंटों समय लग गया तब तक बैजु का गाय इधर उधर भागने लगा वो इतना समय लगते देख वहीं शिवलिंग रख दिया। इसलिए इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ मंदिर कहा जाता है।
रावण के लघुशंका से तालाब यहां बन गया जो आज भी मौजूद है। रावण लौट कर आया यहां भगवान को लाख प्रयत्न कर लें जाना चाहा, शिवलिंग पर अपना अंगूठा का छाप छोड़ दिया, लेकिन भगवान यहीं स्थापित हो गए। फिर सभी देवताओं ने यहां शिवलिंग की पूजा की, भगवान शिव यही स्थापित हो कर रह गए।